
Panch Parmeshwar kahani प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है, जो भारतीय समाज में न्याय, सत्य और नैतिकता की गहरी समझ को दर्शाती है। यह कहानी गाँव की पृष्ठभूमि में स्थापित है, जहाँ पंचायतें न्याय का प्रमुख माध्यम थीं। इस कहानी में सत्य और न्याय को बडी जटिलता से समझाया गया है इस कहानी को पूरी पढ़े –
पंच परमेश्वर कहानी का परिचय
पंच परमेश्वर में प्रेमचंद ने ग्रामीण जीवन की सादगी और उसकी जटिलताओं को बड़े ही मार्मिक और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है। कहानी का मुख्य पात्र जुम्मन शेख है, जो अपनी बूढ़ी खाला (मौसी) से जायदाद प्राप्त करने के बाद उसे प्रताड़ित करने लगता है। खाला अपनी शिकायत पंचायत में ले जाती है, जहाँ जुम्मन का घनिष्ठ मित्र अलगू चौधरी सरपंच नियुक्त होता है।
अलगू चौधरी को एक ओर दोस्ती का भार है, तो दूसरी ओर न्याय की जिम्मेदारी। प्रेमचंद ने अलगू की दुविधा और उसके न्यायप्रिय निर्णय को बड़ी ही कुशलता से चित्रित किया है। जब अलगू खाला के पक्ष में निर्णय सुनाता है, तो जुम्मन उसे अपना दुश्मन समझ लेता है। लेकिन जब जुम्मन को खुद पंचायत में सरपंच बनने का मौका मिलता है, तो वह भी अपने मित्र अलगू के प्रति निष्पक्षता बरतते हुए न्याय करता है।
Panch Parmeshwar kahani (पंच परमेश्वर कहानी)
पहला पार्ट
जुमन शेख और अलगू की मित्रता बहुत गहरी थी । दोनों मिलकर खेती करते थे और आर्थिक मामलों में भी साझेदारी थी । एक दूसरे पर उन्हें पूरा भरोसा था । जब चुंबन हज यात्रा पर जाते थे , तब उन्होंने अपना घर अलगू को सौंप दिया था , और अलगू जब भी बाहर जाते, तो अपना घर जुम्मन को शॉप जाते थे । उनके बीच ना तो खाने पीने का संबंध था ना ही धार्मिक, सिर्फ विचारों की समानता थी। वास्तव में मित्रता की बुनियादी भी नहीं होती है ।
उनकी मित्रता की शुरुआत उसी समय हुई, जब दोनों बच्चे थे और जुम्मन के आदर्श पिता जुमराती ने उन्हें शिक्षा दी थी। बाकी ने गुरु जी की बहुत सेवा की थी, बहुत प्याले साफे। उनका हुक्का कभी ठंडा नहीं हुआ, क्योंकि हर चिलम को एक घंटे तक पढ़ाई से दूर कर दिया गया था। अलगू के पिता पुराने विचारधारा के व्यक्ति थे। उन्हें शिक्षा से अधिक गुरु की सेवा पर विश्वास था। उनका कहना था कि ज्ञान पढ़ने से नहीं, गुरु का आशीर्वाद मिलता है। गुरु जी की कृपा अवश्य करें। अगर जुमराती शेख के आशीर्वाद का कोई असर नहीं हुआ, तो मन ने शिक्षा ग्रहण की कि मैंने अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी, और अगर विद्या अपनी किस्मत में नहीं थी, तो यह कैसे हुई?
लेकिन जुमराती शेख खुद आशीर्वाद की साल अपने सोटे पर विश्वास रखते थे। इसी सोते के दम पर आसपास के गांवों में जुम्मन का सम्मान था। उनके लिखे गए दस्तावेज़ों को अदालत के कर्मचारी भी चुनौती नहीं दे सकते थे। वकील का डाकिया, वकील और तहसील के कर्मचारी सभी उनसे प्रार्थना की कामना करते थे। इसलिए अलगू का मन धन के कारण था , तो जम्मुन शेख अपनी अनोखी विद्या के कारण हर किसी के पत्र थे ।
दूसरा पार्ट
जुम्मन शेख़ की एक बुजुर्ग मौसी थी, जिनके पास छोटी-सी ज़मीन थी, लेकिन उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार नहीं था। जुम्मन ने उनसे मिठे- मिठे वादे करके अपना नाम करवा लिया था। जब तक जमीन का दानपत्र रजिस्ट्री नहीं हुआ था, तब तक मौसी का खूब आदर-सत्कार हुआ। उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराये गए , हलवे-पुलाव का आनंद दिया गया। लेकिन रजिस्ट्री होते ही यह आदर-सत्कार ख़तम हो गया। जुम्मन की पत्नी करीमन अब रोटियों के साथ कड़वी बातें भी परोसनी लगी। जुम्मन भी बेरुखी बेरुखी लागे। अब बेचारी मौसी को रोज़ ऐसी बातें सुननी पड़ती थी ।
बुढ़िया कब तक जिएंगे ? दो-तीन भीगी बंजर जमीन क्या दे दी , मानो उसे खरीद लिया! बिना मसालेदार डालकर रोटियां नहीं खाई जाती! जितना पैसा इसके खाने पीने में लग चुके हैं, उससे तो अब तक का एक पूरा गांव खरीद लिया होता। कुछ दिनों तक मौसी नहीं है सब सह लेकिन जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो जुम्मन से शिकायत की । जुम्मन ने उसे उनकी बातों को नजर अंदाज कर दिया कुछ दिन इसी तरह बीत गए आखिरकार एक दिन मौसी ने जुम्मन से कहा तुम्हारे साथ मेरा गुजरा नहीं हो पाएंगे, तुम ऐसा करो मुझे कुछ पैसे दे दो ताकि मैं अपना खाना खुद बना लूंगा ।
जुम्मन ने साहसपूर्वक उत्तर दिया, “क्या यहाँ पैसे पेड़ों पर उगते हैं?”
मौसी ने विनम्रता से कहा, ” मुझे कुछ सुख सुख चाहिए भी या नहीं?”
जो मैंने गंभीर स्वर में उत्तर दिया, ” तो क्या किसी ने सोचा था कि तुम मौत से लड़का आई हो?”
मौसी नाराज हो गई और पंचायत बुलाने की धमकी दी। जो मां हंस पड़े जैसे कोई शिकारी हिरण को जाल में फसता देखकर हंसना है । वे बोले , जरूर पंचायत करो । फैसला हो जाए, मुझे भी रोज-रोज की चिक चिक पसंद नहीं है ।
पंचायत में कौन जीतेगा, इस बारे में जुम्मन को कोई शक नहीं था । आसपास गांव में कौन ऐसा था जो उसकी मेहरबानियां का कर्जदार ना हो? कौन ऐसा था जो उसे दुश्मन बनाने की हिम्मत कर सके? किसमें साहस था कि उसका सामना कर सके? आसपास से फरिश्ते तो पंचायत करने आएंगे नहीं।
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तीसरे पार्ट
उसके बाद कई दिनों तक बुरी खल हाथ में एक लकड़ी लेकर आसपास गांव में घूमती रही। उनकी कमर झुक झुक कर कमान जैसी हो गई थी। एक-एक कदम चलना मुश्किल था, पर उन्हें इस मामले का हल निकालना था। शायद ही कोई भला आदमी होगा जिसके सामने बुढ़िया ने अपने दुख के आंसू ना बहाये हो। किसी ने उनकी मन से हाँ- हूँ करके टाल दिया, तो किसी ने इस अन्याय पर समाज गाली दी। कहां, कब्र में पैर लटके हुए हैं, आज मरे , कल दूसरा दिन, पर हवस नहीं जाती। आप क्या चाहिए? रोटी खाओ और ईश्वर का नाम लो . तुम्हें आप खेती – बाड़ी से क्या मतलब है? कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हें इस स्थिति पर हंसी आई। झुकी हुई कमर, पोपला मुंह, बाल सफेद इतनी चीजों हो तो हसी क्यों ना आये ? न्याय प्रिय दयालु और दीनवत्सला लोग बहुत कम थे। जिन्होंने इस वृध्दा का दुख ध्यान से सुनाओ और उसे सांत्वना दी हो । चारों ओर से घूम-गम कर बेचारी अलगू चौधरी के पास पहुंची । लाठी पटक दी और दम लेकर बोली, ”बेटा, तुम भी एक बार मेरी पंचायत चले आना।”
अलगू ने कहा, ” मुझे बुलाकर क्या करोगे? कई गांव के लोग तो आएंगे ही।”
खला ने कहा, ” अपना दुःख सबके सामने रो आई हूं । अब आने न आने का निर्णय उनके है। ”
अलगू ने कहा, ” ए तो जाऊंगा, पर पंचायत में मुंह नहीं खोलूंगा।”
खाला ने पूछा, ” क्यों बेटा?”
अलगू ने कहा, ” अब इसका क्या जवाब दूं? अपनी मर्जी जुम्मन मेरी पुराना दोस्त है, उसे बिगाड़ नहीं कर सकता।”
खाला ने कहा, ” बेटा, क्या बिगाड़ के ड्रेस से सच बात नहीं कहेंगे?”
हमारे भीतर सोया हुआ धर्म ज्ञान अक्सर अनजान रहता है, पर चुनौती मिलने पर वहां जाग उठता है और फिर उसे कोई हार नहीं सकता एल्गो इस सवाल का कोई उत्तर ना दे सका पर उसके मन में यह शब्द घूमते रहे – ” क्या बिगाड़ के ड्रेस से सच बात नहीं कहेंगे?”
चौड़ा पार्ट
संध्या के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत जुटी शेख जुम्मन ने पहले से ही फर्श बचा रखा था और पान इलायची, हुक्का तंबाकू आदि का इंतजाम किया था । वह खुद जरूर अलगू चौधरी के साथ थोड़ी दूर पर बैठे थे और जब पंचायत में कोई आता, तो विनम्रता से सलाम करते थे । जब सूरज डूब गया और पेड़ों पर चिड़िया का कलराव शुरू हुआ, तब पंचायत भी शुरू हुआ । फारसी की सारी जग भर गई लेकिन अधिकतर लोग लोग दर्शन ही थे । बुलाए गए लोगों में वही आए थे , जिन्हें जुम्मन से कोई शिकवा था । एक कोने में आग स लग रही थी और नै तेजी से चिलम भर रहा था। यहाँ तय करना मुश्किल था की सुलगते उपलों से ज्यादा दुआ निकलता था या चिलम के काश से बच्चे इधर – उधर दौड़ रहे थे। कोई जगह रहा था तो कोई रो रहा रहा था चारो ओर शोर मच रहा था गांव के कुत्ते इस जानव को भीज समझ कर झुण्ड में आ गए थे ।
पंच के बैठने के बाद बूढी खला ने उनसे विनती की , पांचो तीन साल मैंने अपनी साडी ज्यादाद अपने जुम्मन भांजे के नाम कर दी थी । आप लोग तो जानते ही है की जो मुझे जीवन भर रोटी कपडा देने का वादा किया था । मैंने तो एक साल तो मैं किसी तरह रो धोकर बिता लिया, लेकिन अब यहां रोज-रोज का रोना सहा नहीं जाता । मुझे ना तो पेट भर रोटी मिलती है और ना ही तन का कपड़ा । मैं बेसहारा विधवा हूं , कचहरी नहीं जा सकती । तुम्हारे सिवा और किसे अपना दुख कहूं? जो भी राह तुम लोग निकालो, इस पर चलूंगी । अगर मुझे कोई गलती हो तो मुझे डांट दो अगर जुम्मन में गलती हो तो उसे समझाओ , क्यों वहां एक बेसहारा की आह ले रहा है । मैं पांचों का हुक्म सिर माथे पर रखूंगी।”
रामधन मिश्रा, जिनमें कोई रिश्तेदारों को जुम्मनअपने गांव में बसाया था, बोले, ” जुम्मन मियां, किसे पंच बनाते हो? अभी से इसका निपटारा कर लो फिर पंच जो कहेंगे, वह मानना पड़ेगा ।
जुम्मन को पंचायत में ज्यादातर वही लोग दिखे, जिनसे उनका किसी न किसी कारण वैमनस्य था। जुम्मन बोले, “पंचों का हुक्म अल्लाह का हुक्म है। खालाजान जिसे चाहें, उसे पंच बनाएं। मुझे कोई एतराज नहीं।”
खाला ने चिल्लाकर कहा, अरे अल्लाह के बंदे! पंचों के नाम क्यों नहीं बताते? कुछ मुझे भी तो मालूम हो।
जुम्मन ने गुस्से से कहा , इस वक्त मेरा मुँह मत खुलवाओ तुम्हारी बन पड़ी है , जिसे चाहो पंच बनाओ ।
खाला जुम्मन की मंशा समझ गईं। उन्होंने कहा, “बेटा, खुदा से डरो। पंच न किसी के दोस्त होते हैं, न किसी के दुश्मन। कैसी बातें कर रहे हो! अगर तुम्हें किसी पर विश्वास नहीं है, तो अलगू चौधरी को तो मानते हो, लो, मैं उन्हीं को सरपंच बनाती हूँ।”
जुम्मन शेख ने यह सुनकर संतोष की सांस ली, लेकिन चेहरे पर भाव छिपाकर बोले, “अलगू ही सही, मेरे लिए जैसे रामधन वैसे अलगू।”
अलगू इस झमेले में नहीं पड़ना चाहते थे , वह कन्नी काटते हुए बोले खला तुम जानती हो की मेरी ओर जुम्मन की गहरी दोस्ती है ।
खला ने गंभीर स्वर में कहा , बेटा दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान नहीं बेचता है । पंच के दिल में खुदा बसता है , पंचो के मुँह से जो बात निकलती है वह खुदा की तरफ से होती है ।
अलगू चौधरी सरपंच बने। रामधन मिश्र और जुम्मन के दूसरे विरोधियों ने बूढ़ी को मन ही मन बहुत सराहा।
अलगू चौधरी बोले, “शेख जुम्मन! हम और तुम पुराने दोस्त हैं। जब जरूरत पड़ी, तुमने मेरी मदद की और मैंने भी जितना बन पड़ा, तुम्हारी सेवा की। लेकिन इस समय तुम और बुढ़ी खाला दोनों हमारे लिए बराबर हो। तुमको पंचों से जो कुछ कहना हो, कहो।”
जुम्मन को पूरा विश्वास था कि अब बाजी उनकी है। अलगू यह सब दिखावे की बातें कर रहा है। अतएव शांत-चित्त होकर बोले, “पंचों, तीन साल पहले खालाजान को कोई तकलीफ नहीं दी। मैं उन्हें अपनी माँ के समान मानता हूँ। खालाजान ने अपनी जायदाद मेरे नाम हिबा कर दी थी । मैंने उन्हें जीवनभर खाना – कपडे देने का वादा किया था । खुदा गवाह है , की आज तक मैंने खालाजान को कोई तकलीफ नहीं दी। उनकी सेवा करना मेरा फर्ज है। लेकिन औरतों में थोड़ा बहुत मनमुटाव रहता है, इसमें मेरा क्या दोष? खालाजान मुझसे माहवारी खर्च अलग मांगती हैं। जायदाद जितनी है, वह पंचों से छिपी नहीं है। उससे इतना मुनाफा नहीं होता कि माहवारी खर्च दे सकूँ। इसके अलावा हिबानामे में माहवारी खर्च का कोई जिक्र नहीं है, नहीं तो मैं भूलकर भी इस झमेले में न पड़ता। बस, मुझे यही कहना है। अब पंचों का जो हुक्म होगा, वह मंजूर होगा।”
अलगू चौधरी का कचहरी से काम पड़ता रहता था, इसलिए वह कानून के जानकार थे। उन्होंने जुम्मन से सवाल-जवाब शुरू किए। एक – एक सावल जुम्मन के दिल पर हथोड़ा की तरह लग रहा था । रामधन मिश्र इन सवालों पर प्रसन्न हो रहे थे , जुम्मन हैरान थे की अलगू को क्या हो गया है अभी यहाँ मेरे साथ बैठा कैसे – कैसे बाटे कर रहा था । इतनी जल्दी इसने ऐसा रूप कैसे बदल लिया कि मेरी जड़ खोदने पर तुला हुआ है। न जाने कब की कसर यह निकाल रहा है? क्या इतने दिनों की दोस्ती कुछ भी काम नहीं आएगी?
जुम्मन शेख इन विचारों में उलझे हुए थे कि अलगू ने फैसला सुनाया, “जुम्मन शेख, पंचों ने इस मामले पर विचार किया। उन्हें यह उचित लगता है कि खालाजान को माहवारी खर्च दिया जाए। हमारा मानना है कि खाला की जायदाद से इतना मुनाफा होता है कि माहवारी खर्च दिया जा सके। बस, यही हमारा फैसला है। अगर जुम्मन को खर्च देना मंजूर न हो, तो हिबानामा रद्द समझा जाए।”
यह फैसला सुनते ही जुम्मन सन्न रह गए। जो अपना मित्र हो, वह शत्रु का व्यवहार करे और गले पर छुरी फेरे, इसे समय के बदलाव के सिवा और क्या कहा जा सकता है? जिस पर पूरा भरोसा था, उसने समय पड़ने पर धोखा दिया। ऐसे ही अवसरों पर सच्चे और झूठे मित्रों की परीक्षा होती है। यही कलियुग की मित्रता है। अगर लोग ऐसे कपटी और धोखेबाज न होते, तो देश में आपत्तियों का प्रकोप क्यों होता? ये हैजा-प्लेग जैसी बीमारियाँ दुष्कर्मों का ही दंड हैं। मगर रामधन मिश्र और अन्य पंच अलगू चौधरी की इस न्यायप्रियता की प्रशंसा कर रहे थे। वे कहते थे, “यही है असली पंचायत! दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। दोस्ती अपनी जगह है, लेकिन धर्म का पालन करना मुख्य है। ऐसे ही सत्यवादी लोगों के बल पर पृथ्वी टिकी है, नहीं तो वह कब की रसातल में चली जाती।”
इस फैसले ने अलगू और जुम्मन की दोस्ती की जड़ें हिला दीं। अब वे साथ-साथ बातें करते नहीं दिखते। इतनी पुरानी मित्रता सत्य के एक झोंके से भी न टिक सकी। सचमुच वह बालू की जमीन पर खड़ी थी। उनमें अब केवल शिष्टाचार का व्यवहार रह गया था। एक-दूसरे की आवभगत बढ़ गई थी। वे मिलते थे, पर जैसे तलवार ढाल से मिलती है।
जुम्मन के मन में मित्र की कुटिलता का खटका हर समय रहता था। वह हर पल इसी चिंता में रहते थे कि किसी तरह बदला लेने का मौका मिले।
पांचवा पार्ट
अच्छे कामों में समय लग सकता है, लेकिन बुरे कामों की सिद्धि जल्दी हो जाती है। जुम्मन को भी बदला लेने का मौका जल्दी ही मिल गया। पिछले साल, अलगू चौधरी ने बटेसर से एक अच्छी जोड़ी बैलों की खरीदी थी। ये बैल पछाहीं जाति के थे, सुंदर और बड़े-बड़े सींगों वाले। गॉँव में कई महीने तक लोग उन्हें देखने आते रहे। जुम्मन की पंचायत के एक महीने बाद, इस जोड़ी का एक बैल मर गया। जुम्मन ने अपने दोस्तों से कहा कि यह अलगू की दग़ाबाज़ी की सजा है। इंसान सब्र कर सकता है, लेकिन भगवान सब देखता है। अलगू को शक हुआ कि जुम्मन ने बैल को जहर दिया है। चौधराइन ने भी इस दुर्घटना के लिए जुम्मन को ही जिम्मेदार ठहराया। उसने कहा कि जुम्मन ने कुछ न कुछ किया है। चौधराइन और करीमन में इस विषय पर बहस छिड़ गई और दोनों ने एक-दूसरे पर ताने कसे। अंततः जुम्मन ने अपनी पत्नी को डांट-डपट कर शांति स्थापित की। वहीं, अलगू ने भी अपनी पत्नी को तर्क-पूर्ण तरीके से समझाया।
अब अकेला बैल किस काम का? उसका जोड़ ढूँढ़ा गया, लेकिन नहीं मिला। अंततः निर्णय हुआ कि इसे बेच दिया जाए। गॉँव के समझू साहु, जो इक्का-गाड़ी चलाते थे, ने बैल को खरीदा। साहु ने सोचा कि यह बैल हाथ लग जाए तो दिन में बिना किसी परेशानी के तीन खेप कर पाएंगे। उन्होंने बैल देखा, गाड़ी में दौड़ाया और दाम तय कर बैल को अपने द्वार पर बांध लिया। एक महीने में दाम चुकाने का वादा किया। अलगू को भी बैल बेचने की जल्दबाजी थी, इसलिए उन्होंने घाटे की परवाह नहीं की।
समझू साहु ने नए बैल को रगेदना शुरू किया। वह दिन में तीन-तीन, चार-चार खेपें करने लगे। बैल को न चारा मिलता था, न पानी। बस खेपों से काम था। मंडी ले जाकर सूखा भूसा सामने डाल दिया। बेचारा जानवर अभी ठीक से सांस भी नहीं ले पाया था कि फिर से जोत दिया गया। अलगू चौधरी के घर में बैल का खूब ख्याल रखा जाता था। वह कभी-कभार ही बहली में जोते जाते थे। वहाँ बैल को अच्छा खाना मिलता था और उसकी देखभाल की जाती थी। लेकिन अब बैल को आठों पहर काम करना पड़ता था। महीने भर में ही वह थकान से चूर हो गया।
एक दिन चौथी खेप में साहू जी ने बैल पर दूना बोझ लाद दिए , दिनभर के थके हुए बैल के पेअर नहीं उठ रहे थे । साहू जी ने कोड़े फटकारने शुरू कर दिए। बैल ने एक बार फिर जोर लगाया, लेकिन अबकी बार शक्ति ने जवाब दे दिया और वह गिर पड़ा। साहु जी ने बहुत कोशिश की, लेकिन बैल नहीं उठा। साहु जी ने मरे हुए बैल पर गुस्सा निकालते हुए उसे पीटा और कोसने लगे। अंततः वह गाड़ी पर ही लेट गए और वहीं रात बिताई।
सुबह होते ही साहु जी ने पाया कि उनकी थैली और कुछ कनस्तर तेल चोरी हो गए हैं। वह घर पहुँचे और सहुआइन को सारी घटना बताई। सहुआइन ने अलगू चौधरी को गालियाँ दीं और कहा कि उन्होंने खराब बैल बेचा। इस घटना को कई महीने बीत गए। जब अलगू अपने बैल के दाम मांगते, तो साहु और सहुआइन गुस्से में उन्हें भला-बुरा कहते और दाम देने से इनकार कर देते। अंततः गॉँव के लोगों ने पंचायत करने की सलाह दी। अलगू और साहु दोनों राजी हो गए।
छटवा पार्ट
पंचायत की तैयारियाँ जोरों पर थीं। दोनों पक्ष अपने-अपने समर्थकों को एकत्रित करने में जुट गए थे। तीसरे दिन उसी पेड़ के नीचे पंचायत आयोजित हुई। वही संध्या का समय था। खेतों में कौए मटर की फलियों पर अपने स्वत्व को लेकर चर्चा कर रहे थे। पेड़ की डालियों पर बैठे शुकों के बीच इस बात पर बहस हो रही थी कि मनुष्यों को उन्हें ‘वेसुरौवत’ कहने का क्या अधिकार है, जबकि वे स्वयं अपने मित्रों के साथ धोखा करने में भी नहीं हिचकते।
पंचायत बैठने पर रामधन मिश्र ने कहा की , अब देरी किस बात की है पंचो का चुनाव हो जाना चाहिए । बोले चौधरी किसे पंच बनाते हो ?
अलगू ने विनम्रता से कहा, “समझू साहु ही चुन लें।”
समझू उठ खड़े हुए और कड़ककर बोले, “मेरी ओर से जुम्मन शेख।”
जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का दिल धक-धक करने लगा, मानो किसी ने अचानक थप्पड़ मार दिया हो। रामधन मिश्र, जो अलगू के मित्र थे, ने पूछा, “क्यों चौधरी, तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?”
अलगू ने निराशा भरे स्वर में कहा, “नहीं, मुझे क्या आपत्ति होगी?”
उत्तरदायित्व का भाव अक्सर हमारे आचरण को सुधारता है। जब हम गलत राह पर चलते हैं, तो यही भाव हमें सही रास्ता दिखाता है। संपादक अपनी शांति कुटी में बैठकर मंत्रिमंडल पर आक्रमण करता है, लेकिन जब वह स्वयं मंत्रिमंडल में शामिल होता है, तो उसकी लेखनी मर्मज्ञ, विचारशील और न्यायपूर्ण हो जाती है। इसका कारण उत्तरदायित्व का ज्ञान है। युवक अपनी जवानी में उद्दंड रहता है, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी आते ही वह धैर्यशील और शांतचित्त हो जाता है, यह भी उत्तरदायित्व के ज्ञान का ही परिणाम है।
जुम्मन शेख के मन में भी सरपंच का पद संभालते ही जिम्मेदारी का भाव जाग उठा। उसने सोचा, “मैं इस समय न्याय और धर्म के उच्च आसन पर बैठा हूँ। मेरे शब्द देववाणी के समान होने चाहिए, जिसमें मेरे मनोविकारों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। मुझे सत्य से जरा भी विचलित नहीं होना चाहिए।”
पंचों ने दोनों पक्षों से सवाल-जवाब करने शुरू किए। काफी देर तक दोनों दल अपने-अपने तर्क देते रहे। इस पर सभी सहमत थे कि समझू को बैल का मूल्य देना चाहिए, लेकिन समझू बैल के मर जाने से हुई हानि के कारण रियायत चाहता था। कुछ पंच समझू को दंड भी देना चाहते थे ताकि भविष्य में कोई और ऐसा न करे। अंततः जुम्मन ने फैसला सुनाया:
अलगू चौधरी और समजू साहू, पंचो ने आपके मामले पर गहन विचार किया और समजू को बैल का पूरा दाम देना चाहिए । बैल को लेते समय वह स्वस्थ था । अगर उसी समय दाम दिए जाते , तो आजा यहाँ विवाद न होता । बैल की मृत्यु अत्यधिक परिश्रम और सही देखभाल न होने के कारन हुई है ।
रामधन मिश्र बोले , समझू ने जानबूझ कर बैल को मारा है , इसलिए उसे दंड मिलना चाहिए ।
जुम्मन ने कहा, यह दूसरा मुद्दा है, हम उससे संबंधित नहीं हैं।
झगड़ू साहू ने कहा , समझू के साथ कुछ रियायत होनी चाहिए ।
जुम्मन ने कहा, “यह अलगू चौधरी की इच्छा पर निर्भर है। अगर वह रियायत करें तो यह उनकी भलमनसी होगी।”
अलगू चौधरी खुश होकर उठ खड़े हुए और जोर से बोले, “पंच-परमेश्वर की जय!”
इसके साथ ही चारो ओर से आवाज आई , ” पंच-परमेश्वर की जय , पंच में परमेश्वर का वास होता है वही न्याय करते है । पंच के सामने खोटे को कौन खरा कह सकता है ? ”
थोड़ी देर बाद , जुम्मन अलगू के पास ए ओर गले मिलते हुए बोले , ”भैया जब से तुमने मेरी पंचायत की थी, तब से मैं तुम्हारा दुश्मन बन गया था, लेकिन आज मुझे समझ में आया की पंच के पद पर बैठकर न कोई दोस्त होता है न कोई दुश्मन । न्याय के शिव ओर नहीं सूझता, आज मुझे यकीं हो गया की पंच की जबान से खुदा बोलते है ।
अलगू रोने लगे। इस आंसुओं ने दोनों के दिलों का मैल धो दिया और उनकी दोस्ती फिर से हरी हो गई।
कहानी से क्या सिखने को मिली
इस कहानी से सिखने को मिली की जब हमारे हाथ में निर्णय लेने की सकती हो , तो हमें किसी के साथ पक्षपात नहीं करना चाहिए । एक आदर्श न्यायकर्ता वही है , जो सबको सामान रूप से देखे और निर्णय उसी को दे जो सही हो । और साथ ही सिखने को मिली की जित उसी की होती है अपने पक्ष में सही हो और सच्चा हो ।