
Prachin shiv Mandir Bhainsdehi:- दोस्तों क्या आपको पता की हमारे देश में प्राचीन धरोहर पौराणिक मान्यताएं और हजारो रोचक किवंदतियां प्रचलित है, लेकिन मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के भैसदेही में पूर्णा नदी के किनारे स्थित प्राचीन शिव मंदिर है जो अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है, तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में आपको इस ऐतिहासिक प्राचीन शिव मंदिर के बारे में जानेंगे इसे पूरा पढ़ें-
Prachin shiv mandir bhainsdehi
शिव अनंत है, शिव ही सृष्टि की रचयिता है तो विनाशक भी है, शिव से अनेक चमत्कार जुड़े हैं। वैसे ही चमत्कार है ये शिव धाम , शिव के इस पवन भूमि का नाम वराहपुराण में महिष्मति था, जो बाद में भैसदेही हो गया । देश में भगवान शिव के मंदिर से जुड़े हजारों मंदिर कई सारे किवंदतियां और पौराणिक मान्यता में प्रचलित है लेकिन बैतूल जिले के भैसदेही में स्थित 13वीं शताब्दी के प्राची शिव मंदिर अपने आप में एक बेजोड़ कलाकृति का नमूना है।
ये खास शिव धाम सिद्धेश्वर क्षेत्र कहलाता है, कि मान्यता है कि यहां पर जो भी जाकर मन्नत मांगता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। जो प्राचीन शिव मंदिर है अप ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है, सन 1985 को पुरातत्व विभाग के अधीन किया गया था। इस मंदिर का निर्माण में पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है वहां पत्थर पूर्ण नदी के किनारे इसकी चट्टानें मिलती है, काले पत्थर है चट्टानों के रूप में वहां से लाकर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। श्राप के चलते अधूरे शिव मंदिर का रहस्य
प्राचीन शिव मंदिर निर्माण (Prachin shiv mandir)
इस प्राचीन शिव मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि मंदिर आनादिकाल में इसका निर्माण 13 वी शताब्दी में चोल राजवंश के राजा गय ने इस मंदिर का निर्माण कराया है । इस बेजोड़ कलाकृति से बने इस मंदिर का निर्माण नागर और बोगर नाम के दो महान शिल्पकारो भाइयों के हाथो से हुई है जो एक अद्भुद शक्ति के द्वारा इस मंदिर का मिर्माण एक रात में ही किया। लेकिन इसके बाद भी मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया। जब निर्माण हुआ तब इस मंदिर की छत नहीं थी इस मंदिर के पास पूर्ण नदी का संगम स्थल है जहां पर नागों की तपस्या की जाती है और इस वजह से इसका नाम नाग तीर्थ पड़ा।

इस शिव लिंग के पास पाताल का रास्ता बना हुआ है, जो अपने आप में कई रहस्य को समेटे हुए है । यहाँ अत्यंत गहरी सीढिया है, जिसका अंत आज तक न मिल पाया है । ये प्राचीन शिवलिंग 13 शताब्दी में बना इस मंदिर में राजा गय गोंड द्वारा निर्मित मंदिर है, इस मंदिर में नगर लिपि का उल्ल्लेख मिलती है ।
अधूरा शिव मंदिर का रहस्यमयी
पायोसानी लेख में भी इस सिद्धांत का वर्णन है कि उसे समय शिव धाम को सिद्धेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता था, इस मंदिर की स्थापना चोल राजवंश के राजा गय द्वारा की गई थी। जिसे लेकर बड़े दिलचस्प कहानी प्रसिद्ध है –

ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की स्थापना के लिए राजा गय ने 84 हजार ऋषि मुनियों को यहां पाय-पान करने के लिए आमंत्रित किया गया, जब ऋषि मुनियों को प्यास लगी तब राजा गाय ने उसे ऋषि मुनियों को जल – कृष्ण तक करने के लिए चंद्र देव प्रार्थना किया। इसके बाद चंद्र देव ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर अपनी पांचवी कला पायोसानी का उद्गम कराया जिससे ऋषियों – मुनियों की प्यास शांत हुई।
इस मंदिर के निर्माण के लिए राजा गय जो भगवान शिव ने बहुत बड़े भक्त थे राजा गय ने दो शिल्पकार भाइयों को आमंत्रित किया जिसका नाम नागर और बोगर है। उन दोनों भाइयों को एक अद्भुत सिद्धि प्राप्त थी की कोई भी बड़ा से बड़ा काम एक ही रात में करते थे जहां काम कितना भी बड़ा क्यों ना हो। उन्हें सिद्धि(वरदान) यह प्राप्त थी कि कोई भी बड़ा से बड़ा काम वह बिना कपड़े के करते थे मतलब नग्न अवस्था में, निर्माण किया करते थे। लेकिन उन्हें एक श्राप मिला हुआ था कि अगर किसी ने उन्हें निर्वस्त्र अवस्था में निर्माण करते देख लिया तो वह स्वयं पत्थर के बन जायेगे ।
लेकिन जब दोनों शिल्पकार भाइयों को काम करते काफी समय हो गए तो उनके बहन ने उनके लिए खाना लेकर आ गए और उन्हें बिना कपड़े की देख लिए तो वहां पत्थर में तब्दील हो गए। इस वजह से मंदिर के ऊपर का गुंबद नहीं बन पाया। इस वजह से इस प्राचीन सिद्धेश्वर शिवलिंग का गुंबद अधूरा रह गया।
मनकर्ण तालाब
प्राचीन शिवलिंग मंदिर के सामने तालाब बना है जहां पर जानुकर्ण ऋषि द्वारा तपस्या की गई थी, इसलिए इस तालाब का नाम मनकर्ण तालाब कहा जाता है। कहते हैं कि यहां पर हर किसी की मनोकामना पूर्ण होते हैं जो भी मन्नत लेकर यहां आते हैं उनकी सभी मामलों कामनाएं पूर्ण होती है।
इस मंदिर के सामने 10 से 15 मीटर की दूरी पर पूर्ण नदी का संगम स्थल है जिस नागतीर्थ स्थल कहा जाता है जहां पर नागों की तपस्या की जाती है।
सूर्य और चन्द्रमा करते है शिव को प्रणाम
इस मंदिर कि बनावट प्राचीन शिल्पकारों ने इसे बड़े ही अद्भुत तरीके से जैसे सूर्य कि पहली किरण शिवलिंग को स्पर्श करती है और चन्द्रमा कि किरण पूर्णिमा के दिन शिव को स्पर्श करती है, जो अपने आप में अद्भुत है।
गर्भग्रह में शिवलिंग की स्थापना
गृह गर्भ ग्रह में स्थापित शिवलिंग को लेकर एक कहानी प्रचलित है, ऐसा कहा जाता है कि पूर्व में स्थापित शिवलिंग खंडित हो जाने के कारण 1927 में यहां दूसरी शिवलिंग की स्थापना की गई। जब खंडित शिवलिंग को खोज कर निकाला जा रहा था तो उसे समय उसे स्थान से अत्यधिक मात्रा में जहरीली गैस निकली जिससे वहां के स्थानीय लोग डरकर भाग गए । खंडित शिवलिंग के नीचे के गैस निकल जाने के कारण वहां पर भारी बारिश और तूफान आया ।
तीन दिनों के बाद वहां पर विधि -विधान से वाराणसी से लाये गए शिवलिंग को स्थापित किया तब जाकर बारिश और तूफान शांत हुआ। यह खास शिव धाम सिद्धेश्वर क्षेत्र कहलाता है, यहां पर मान्यता है कि जो भी जाकर मन्नत मांगता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
कलाकृतिया
बताया गया है कि यहाँ पर कलाकृतिया अंजता अनुरा और खजुराओ से काफी मिलता जुलता है, यहाँ आने वाले सैलानी को अपनी ओर सहज आकर्षित करती है इन कलाकतियों को लोग दूर दूर से देखने के लिए आते है। शिव मंदिर के साथ साथ यहाँ पर कई प्राचीन कलाकतियों का नमूना है।
मंदिर को लेकार और एक कहानिया प्रचलित है
इस प्राचीन शिव धाम में लोग पत्थरो पर बैठकर लोग संगीतकार और ऐतिहासकार बने है यहाँ पर आकार शिव कि साधना करने से लोगो को अच्छी – अच्छी नौकरिया मिली है, इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन करने से अनिष्ट सिद्धि प्राप्ति होती है। इन सभी कहानिया कि वजह से मंदिर के प्रति लोगो कि अस्त दिन- बा – दिन बहती गयी। इस मनीर लोगो को अपनी और आकर्षित करती है, प्राचीन शिव मंदिर बेजोड़ कलाकृतियों को उखेरकर बनाया गया है।
इस मंदिर कि कलाकृति को देखकर पर्यटक अक्सर मन्त्रमुक्त हो जाया करते है, यहाँ पर आकार खुद को शिव के सारण में पाकर आनंदित महसूस करते है। जितना अनूठा शिव का धाम है , उतना ही अधिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है, इस पवन धारा का होकर रह जाता है । यहाँ आकर ऐसा लगता है, मनो आप शिवलोक में आ गये है ।
गर्भगृह कि अद्भुत शक्ति
इस मंदिर के अंदर गर्भ गृह में कोई भी व्यक्ति 24 घंटे नहीं रह सकता ऐसा जिसने भी प्रयास करने का कोशिश कि उसको असफलता ही हासिल हुई है । एक बार रामचरित्र मानस 24 घंटे के अनुष्ठान एक धार्मिक श्रद्धालु द्वारा किया गया था उस समय एक ऐसा क्षण आया कि अचानक दिया – बत्ती भड़क गयी और आग लग गयी जिससे उन लोगो को गर्भ गृह से बहार आना पड़ा और बहार ही रामचरित्र मानस का का पाठ करना पड़ा।
इस मंदिर में शिवलिंग के के समक्ष स्थित भगवान शिव के नंदी में अद्भुत आवाज आती है, भगवान नंदी को जोर से टोकने पर टन – टन जैसे गुगरु कि आवाज आती है जो कि अपने आप में एक रहश्य बना हुआ है । इसके पश्चात् गणेश कि मूर्ति है, जो एक ही बाये पैर के अंगुली पर खड़ा हुआ है ये मूर्ति लगभग 5.5 फ़ीट है जो एक रहश्य बना हुआ है ।
इससे यहाँ सिद्ध होता है कि बाबा सिद्धेश्वर नाथ गर्भ गृह में विराजमान है और लोगो को अभीष्ट सिद्धि कि प्राप्ति होती है । ये दार्शनिक स्थल पूर्णा सलिला कि पांचवी कला, माँ पयोष्णी नाम से जिन्हे हम माँ पूर्णा नाम से जानते है।
भारतीय पुरतत्व विभाग
प्राचीन शिव मंदिर जिसे उप ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है, सन 1985 को इस मंदिर को पुरातत्व विभाग के अधीन किया गया। इसका देखरेख का जुम्मा पुरातत्व विभाग द्वारा किया जाता है।
इसे भी पढ़े – काफी रोचक है काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास जानिए
प्राचीन शिव मंदिर कि खास बातें
- ये सिद्ध धाम मंदिर के वजह से ही प्रसिद्ध नहीं है, यहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर हजारो के संख्या में श्रदालु पहुंचते है। यह इस खास मौके पर मेले का आयोजन होता है, जिसमे दूर – दूर से लोक पहुंचते है । यहाँ शिवरात्रि भंडारे का आयोजन होता है ।
- जब बारिश न होने पर शिवलिंग को जल से भरा जाता है, जिसमे उस क्षेत्र में अच्छी बारिश होती है। जब भी शिवलिंग को जल से भर देने पर स्थानीय लोगो का कहना है कि जब भी कुछ हम ऐसा करते है तो निश्चित तौर पर बारिश हुई है, ये भी अपने आप में एक रहस्यमयी है ।
- इस सिध्द स्थल पर हो रहे चमत्कार को देखते हुए लोगो कि आस्ता दिनों दिनों बढ़ती गयी है।
- इस शिवलिंग के पास पाताल का रास्ता बना हुआ है, जो अपने आप में कई रहस्य को समेटे हुए है, यहाँ पर अत्यंत गहरी सिढ़िता है जिसका अंत आज तक न मिल पाया।
- ये प्राचीन शिव मंदिर 13 शताब्दी में बना हुआ है, इस मंदिर का निर्माण गोंड राजा गय द्वारा निर्मित मंदिर है, इस मंदिर में नागर लिपि का उल्लेख मिलती है।
- इस मंदिर का निर्माण ऐसा कहा जाता है कि एक रात में हुई है इतनी बड़ी मंदिर का निर्माण एक अपने आप में चमत्कारी हो सकता है ।
- इस मंदिर का निर्माण दो भाई नागर और भोगर के हाथो से हुई है जो एक अद्भुत शक्ति के द्वारा ही इस मंदिर का निर्माण हुआ है ।
Prachin shiv mandir कलाकृतियों एवं बनावट
भोले भंडारे के इस पवन भूमि आने – वाले भक्तो को सहज ही मोह लेते है, यहाँ जितना समय बिताया जाये वह काम है । यहाँ बैठकर आप इस अद्भुत कलाकृतियों को निहार सकते है, जिन्हे देखकर शिल्पकला के प्रेमी मंत्रमुग्ध और खो जाते है । मंदिर के मिर्माण कि बात करे तो अपने आप में भेहद अनूठा है, मंदिर में ठोस काले पत्थर से निर्मित इस शिव मंदिर का प्रवेश द्वार उत्तर दिशा कि और है । ये मंदिर तीनो दिशाओ से बंद है मंदिर के सामने मंडप जैसा 60 वर्ग फ़ीट का चबूतरा बना है जो यह प्रवेश करते ही दिखाई देते है, तीनो ओर से पत्थर कि सीढिया बनी है ।
मंदिर पर उत्तर दिशा कि और पांच फ़ीट कि गणेश प्रतिमाह जो बिना किसी सहारे एक पैर पर विराजमान है । मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है जिसकी स्थापना 1927 में स्थानीय लोगो ने कि थी। भू-मूलतः ये पाशक शिवलिंग था जिसके खंडित हो जाने पर यहाँ एक नए शिवलिंग कि स्थापना हुए है ।
इस मंदिर को लेकर लोगो कि अटूट आस्था है यहाँ आने वाले शिव भक्त कि भक्ति दिखी तो शिव के प्रति प्रेमी का कोई हिसाब नहीं। इस ऐतिहासिक देखरेख का जिम्मेदारी यहाँ के स्थानीय लोगो ने उठा रखा है । यहाँ के जागरूक स्थानीय नागरिक ने इस धरोहर को संजोकर रखा है ।
इसे भी पढ़े – तिरुपति बालाजी मंदिर कहाँ है जानिए पूरी जानकारी जानिए –
बाबा सिद्धेश्वर शिव धाम में कैसे पहुंचे
शिव सरल है, उनकी साधना सरल है, उतना ही सरल इस पावन सिद्धधाम तक पहुंचना, यहाँ जाने के लिए रेलमार्ग, वायुमार्ग और सड़क के साधन उपलब्ध है। इस सिद्धाम में आने के लिए वायु मार्ग से भोपाल एयरपोर्ट या नागपुर एयरपोर्ट पर उतरकर सड़क मार्ग या रेल मार्ग से बैतूल जिला मुख्यालय तक आ सकते है । भोपाल से बैतूल कि दुरी लगभग 185 किलोमीटर और नागपुर 175 किलोमीटर दुरी पर है वही बैतूल से भैंसदेही कि बात करे तो 60 किलोमीटर दुरी पर स्थित है । वही अगर अमरावती से भैंसदेही कि दुरी 93 km और परतवाड़ा से 63 km दुरी पर स्थित है ।
इस दार्शनिक स्थल के आसपास और भी सिद्धि धाम है जिसमे से पहला कुकरू खामला जिसकी दुरी भैंसदेही से 25 km दुरी पर स्थित है । इस पर्यटक स्थल को जिले का दार्जलिंग कहा जाता है यहाँ पर हर मौसम में जिला मुख्यालय से 4-5 C तापमान काम होता है । यहाँ पर मध्य भारत का एक कॉपी बाग़ मौजूद है जिसे अंग्रेजो ने लगाया था, इस जगह पर लोग खासकर सूर्यौदय और सूर्यास्त के समय लोग ज्यादा घूमने आते है । इस सुंदरता को देखकर लोग बहुत आनंद उठाते है।
दूसरा मुक्तगिरि जैन तीर्थस्थल है यहाँ पर भैसदेही से इसकी दुरी 50 Km है । इस तीर्थस्थल पर एक सैकड़े से भी ज्यादा मंदिर स्थापित है, यहाँ पर जैन मुनियो ने वर्षो तक तपस्या कि और इस पवन भूमि को अपनी तपो भूमि बनाया, कहा जाता है कि इस तपो भूमि में केसर कि वर्षा होती है ।
इसे भी पढ़े – बालाजी पुरम मंदिर बैतूल का इतिहास जानिए
Prachin shiv mandir में गोंडवाना राज चिन्ह
यहाँ पर गोंडवाना का राज चिन्ह का उल्लेख मिलता है, इस प्राचीन शिव मंदिर में जो कि इसका प्राचीन नाम मैकावती (महिष्मति) था, यहाँ पर गोंडराजा गय का राज हुआ करता था , और वह भगवान शिव का बहुत बड़े भक्त थे और उन्होंने ही मंदिर बनवाने का आदेश दो भाई नागर और बोगर को दिया था । इस प्राचीन शिव मंदिर में पत्थर में हाथी के ऊपर शेर का स्टेचू बना हुआ है, जिसे गोंड राजवंश का राज चिन्ह कहा जाता है।
गोंड राजचिन्ह में हाथी के ऊपर शेर का कि मूरत को उखेरा गया है जिसे गोंडी में छः देव और रात देव का का उल्लेख मिलता है। यहाँ पर सोलह खम्भे लगे है जिसमे गोंड राज चिन्ह में 16 खंड सृष्टि और 9 खंड धरती जो गर्भगृह का नियम है और गोंड राज चिन्ह कि प्रतिक और पहचान है। जिसमे कुछ मूर्ति टूटी हुई है।
यहाँ पर गुफा है जिसे पातालेश्वर द्वार कहते है और कहा जाता है कि पुराने गोंड जानकारों के अनुसार उस समय में यहाँ से बकरी को छोड़ा गया था तो अंदर ही अंदर सालबर्डी शिव गुफा महादेव में निकला हुआ है जो अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है । वह से लगभग 70 किलोमीटर के आसपास है जो अमरावती जिले में स्थित है।
Prachin shiv mandir FAQ
1. प्राचीन शिव मंदिर भैंसदेही कहां स्थित है?
Ans – यह मंदिर मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में भैंसदेही तहसील में स्थित है, जिसका प्राचीन नाम मैकावती (महिष्मति) है ।
2. मंदिर की स्थापना कब हुई थी?
Ans – मंदिर की स्थापना का 13 शाताब्दी में हुआ है, जो अपने आप में कई रहस्य को समेटे हुए है।
3. यहां किस देवता की पूजा की जाती है?
Ans – इस प्राचीन व्हिव मंदिर मंदिर में भगवान शिव की पूजा और साथ ही भगवान गणेश जी कि भी पूजा होती है।
4. मंदिर का विशेष महत्व क्या है?
Ans – यह मंदिर अपनी प्राचीन वास्तुकला, कलाकृतियों, प्राचीन धरोहर पौराणिक मान्यताएं और हजारो रोचक किवंदतियां और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। महाशिवरात्रि के दौरान यहां विशेष उत्सव मनाया जाता है।
5. मंदिर के पास कौन-कौन से पर्यटन स्थल हैं?
Ans – भैंसदेही क्षेत्र में अन्य प्राचीन मंदिर और प्राकृतिक स्थल भी दर्शनीय हैं, जैसे सालबर्डी, चिखलदरा, कुकरू खामला और मुक्तगिरि स्थित है।
6. मंदिर कब खुलता है?
Ans – मंदिर आमतौर पर सुबह से शाम तक खुला रहता है, लेकिन विशेष अवसरों पर समय भिन्न हो सकता है।
7. यहां पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
Ans – भैंसदेही सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। बैतूल, परतवाड़ा से यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
Note:- दोस्तों आपको Prachin Shiv Mandir Bhaisdehi के बारे में जानकरी कैसे लगी आपको पसंद आया होंगे , इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद अगर आपको ऐसे लगे की कोई पॉइंट छूट गयी है तो जरूर कमेंट करे । अगर आपको यहाँ आर्टिकल पसंद आया है तो इसे जरूर शेयर करे। धन्यवाद !