नालंदा विश्वविद्यालय को खिलजी में क्यों जला डाला पूरी जानकारी Nalanda University Bihar History In Hindi

नालंदा विश्वविद्यालय को खिलजी ने क्यों जला डाला सम्पूंर्ण जानकारी nalanda university bihar history in hindi
नालंदा विश्वविद्यालय

इस लेख में बताने वाले है की नालंदा विश्वविद्यालय नवनिर्माण परिसर का उट्घाटन के साथ-साथ प्राचीन कल की नालंदा यूनिवर्सिटी किस तरह की शिक्षानिति थी और किस तरह से यहाँ छात्र विद्य ग्रहण करने आते थे। (Nalanda University bihar history in hindi) नालंदा  विश्वविद्यालय का इतिहास क्या है, बाहरी आक्रांताओं द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय को किस प्रकार से बर्बत कर दिया है । नालदा यूनिवर्सिटी को खिलजी ने जलाया था,नालंदा यूनिवर्सिटी इतना प्रसिद्ध क्यों है, नालंदा यूनिवर्सिटी का रहस्य क्या है ये सब इस लेख में जानने वाले है आगे पढ़े – 

नालंदा विश्वविद्यालय नवनिर्माण परिसर का उद्धाटन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून 2024 को बिहार के राजगीर में नालंदा के प्राचीन खंडहर स्थल के पास नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने नालंदा को भारत की शैक्षिक विरासत और जीवंत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक बताया । उन्होंने कहा, नालंदा विश्वविद्यालय इस सत्य की घोषणा है कि किताबें आग की लपटों में जल सकती हैं, लेकिन आग लपटें ज्ञान को नष्ट नहीं कर सकता नालन्दा एक पहचान, सम्मान और गौरव है।

नालंदा विश्वविद्यालय को खिलजी ने क्यों जला डाला सम्पूंर्ण जानकारी nalanda university bihar history in hindi

इस उद्घाटन समारोह में विदेश मंत्री एस जयशंकर और 17 देशों के राजदूत शामिल हुए कार्यक्रम में बिहार के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा भी मौजूद थे। नए परिसर का उद्घाटन करने से पहले प्रधानमंत्री ने नालंदा के प्राचीन खंडहरों का दौरा किया और परिसर में बोधगया से लाए गए बोधि वृक्ष का एक पौधा भी लगाया। इस मौके पर नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर अरविंद पनगढ़िया और अंतरिम कुलपति अभय कुमार सिंह भी मौजूद थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, प्राचीन खंडहरों के पास स्थित नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्जागरण दुनिया को भारत की क्षमता से परिचित कराएगा । नालंदा सिर्फ भारत के अतीत का पुनर्जागरण नहीं है, बल्कि इससे एशिया के कई देशों की विरासत जुड़ी हुई है । आने वाले दिनों में नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर हमारे सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रमुख केंद्र बनेगा
भारत के अलावा, इस अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में 17 अन्य देश भी शामिल हैं जैसे ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम इन देशों ने विश्वविद्यालय के समर्थन में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे नालंदा विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय पहचान और मजबूत हुई है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास /Nalanda university history

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। यह बिहार राज्य के नालन्दा जिले में स्थित था। नालंदा नाम ‘नालम’ (ज्ञान) और ‘दा’ (दाता) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है वह स्थान जो ज्ञान देता है। यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म के अध्ययन और अनुसंधान का एक प्रमुख केंद्र बन गया। यह विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना से 500 साल पहले अस्तित्व में था और 9 मिलियन से अधिक पुस्तकों का भंडार था। अपने समय का सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान, नालंदा, शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्व में बहुत ही प्रसिद्ध था।
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नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा विश्वविद्यालय के विशाल परिसर में 11 बड़े विहार (मठ) और 6 प्रमुख मंदिर थे, जो छात्रों के लिए आवास और अध्ययन सुविधाएं प्रदान करते थे। नालंदा ने विज्ञान, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, गणित, तर्क और साहित्य सहित अलग – अलग  विषयों में शिक्षा प्रदान की व्यवस्था थी। इतिहास करो का कहना है नालंदा विश्वविद्यालय में 300 बड़े कमरे और 9 बड़े हॉल और साथ ही 9 माजिला विशाल एक लाइब्रेरी थी इस विशाल लइब्रेरी में 90 लाख से भी ज्यादा पुस्तके हुआ करती थी । यहाँ एक समय में 10 हजार से भी ज्यादा छात्र और 2,700 से ज्यादा शिक्षक थे । 

नालदा यूनिवर्सिटी को खिलजी ने जलाया था ?

नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, नालंदा विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के बाद से ही शिक्षा और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र रहा है। हालाँकि, इस महान विश्वविद्यालय का अंत भी उतना ही दुखद था। नालंदा की खुदाई के दौरान ऊपरी परत में राख की मोटी परत मिली थी, जिससे पता चलता है कि यहां भीषण आग लगी थी। कहानी प्रसिद्ध है कि बख्तियार खिलजी ने नालन्दा में आग लगवा दी और उसका विशाल लइब्रेरी छह माह तक जलता रहा। लेकिन नालन्दा विश्वविद्यालय का इतिहास केवल इसी घटना तक सीमित नहीं है।
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नालंदा विश्वविद्यालय
इतिहासकारों के अनुसार तुर्क अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी एक समय बहुत बीमार हो गया था उसके हकीमी ने बहुत इलाज किया लेकिन वह ठीक नहीं हो सका । बख्तियार खिलजी के हकीमो को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी के बारे में पता चला । आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया उन्हें खिलजी का इलाज करने को कहा, लेकिन किसी भी हिंदुस्तानी दवाई को नहीं खाएंगे लेकिन यह भी कहा कि वह ठीक नहीं हुआ तो आचार्य राहुल श्रीभद्रजी की हत्या कर देंगे ।
अगले दिन आचार्य राहुल श्रीभद्रजी उनसे कुरान की पुस्तक मंगवाई आचार्य जी ने कुरान ले गए और कहा कि कुरान की पृष्ट संख्या इतनी से इतने तक पढ़िए ठीक हो जाएगा । बख्तियार खिलजी ने कुरान पड़ा और वह ठीक हो गया लेकिन इसे उसे खुशी नहीं हुई बल्कि बेहद गुस्सा आया उसकी हकीम जो काम नहीं कर सके वह भारतीय आयुर्वेदाचार्य ने कर दिखाया ।
ऐसा बताया जाता है कि वैद्यराज राहुल श्रीभद्रा जी ने कुरान के कुछ पन्नों के कोने पर एक दवा का अदृश्य से लेप लगा दिया था खिलजी पढ़ने के लिए पन्ने पलटते वक्त साथ-साथ दवाई को भी चाट गया और वह ठीक हो गया । बख्तियार खिलजी क्रूर शासक था, मूर्ति पूजा करने वाले का भारी विरोध करता था उसने गुस्से में आकर 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी । उसमें हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुको को मार डाला ।

9 मंजिला लइब्रेरी की पुस्तके महीने तक जलती रही 

इतिहासकारों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय की 9 मंजिला लाइब्रेरी इतनी बड़ी थी कि करीब 3 महीने तक धु-धूकर चलती रही । लाइब्रेरी में बेशक कीमती किताबों का नुकसान पूरे भारत और विश्व का नुकसान था । इतिहासकारों का कहना है कि अगर यह किताबें हमारे पास होती, तो भारत का भविष्य कुछ और होता बरसों के रिसर्च पेपर थे , जो जलकर खाक हो गए ।
लाइब्रेरी में ताड के पत्तों पर हस्तलिखित 90 लाख पांडुलिपिया दुनिया में बौद्ध ज्ञान का सबसे समृद्ध भंडार था । जब परिसर में आक्रमणकारियों ने आग लगाई तो अपनी जान बचाने में कामयाब कुछ बौद्ध कुछ हस्तलिखित पांडुलिपियों बचा पाए । उन्हें अब अमेरिका के लॉस एंजिल्स काउंटी म्यूजियम आर्ट और तिब्बत के यारलुंग म्यूजियम में देखा जा सकता है ।

नालंदा यूनिवर्सिटी इतना प्रसिद्ध क्यों है ?

  • प्राचीनता:- यहाँ सबसे विश्व के सबसे पुराने विश्वविश्वविद्यालय में से एक था जिसे दुनिया भारत नालंदा विश्वविद्यालय को ज्ञान का केंद्र कहा जाता था।
  • शिक्षा का केंद्र:- नालंदा विश्वविद्यालय में विज्ञान, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, गणित, तर्कशास्त्र और साहित्य सहित कई विषयों में उच्च शिक्षा प्रदान की जाती थी।
  • विशाल पुस्तकालय:- लाइब्रेरी में ताड के पत्तों पर हस्तलिखित 90 लाख पांडुलिपिया दुनिया में बौद्ध ज्ञान का सबसे समृद्ध भंडार था ।
  • वैश्विक आकर्षण:- यहां दुनिया भर से छात्र और विद्वान अध्ययन करने आते थे।
  • प्रसिद्ध विद्वान:- नालन्दा के कुछ प्रमुख आचार्य थे शीलभद्र, धर्मपाल, चन्द्रपाल, गुणमति और स्थिरमति  वे 7वीं शताब्दी में ह्वेन त्सांग के समय के एक प्रमुख आचार्य थे।
  • बौद्ध धर्म का केंद्र:- बौद्ध धर्म के अध्ययन और अनुसंधान का प्रमुख स्थान था।

नालंदा यूनिवर्सिटी का रहस्य

1. शिक्षा विधि और पाठ्यक्रम 
नालंदा विश्वविद्यालय की एजुकेशन सिस्टम और पाठ्यक्रम भी एक रहस्य बना हुआ है। यह पूर्णतः ज्ञात नहीं है कि अलग – अलग विषयों में गहन अध्ययन एवं शिक्षा की सिस्टम क्या थीं। इस बात पर भी शोध चल रहा है कि नालंदा में अपनाई गई शिक्षा प्रणाली उस समय के अन्य शैक्षणिक संस्थानों से किस प्रकार अलग थी।
2. नालंदा में विदेशी छात्र का आकर्षण 
विश्व से अलग – अलग देशों से छात्र नालंदा आते थे, जिनमें चीन, तिब्बत, कोरिया और जापान शामिल थे। यह एक रहस्य बना हुआ है कि इतने दूर-दराज के देशो से छात्र यहाँ पढ़ने कैसे आते थे और उन्हें किस प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं। ह्वेन त्सांग और आई-त्सिंग जैसे चीनी तीर्थयात्री और विद्वान नालंदा में अध्ययन करने आए थे ।
3. आध्यात्मिक महत्व एवं धार्मिक केन्द्र
नालन्दा विश्वविद्यालय न केवल शिक्षा का केन्द्र था, बल्कि यह बौद्ध धर्म का भी प्रमुख केन्द्र था। यह एक रहस्य है कि नालंदा में किस प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान और प्रथाएँ की जाती थीं और इसका बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों पर क्या प्रभाव पड़ा। आध्यात्मिक ज्ञान एवं धार्मिक ज्ञान कैसे नालंदा विश्वविद्यालय थी ये भी एक रहस्य है ।
4. प्राचीन लाइब्रेरी एवं उसकी विशालता
नालन्दा विश्वविद्यालय का लाइब्रेरी जिसे ‘धर्मगंज’ कहा जाता था, अपनी विशालता और ज्ञान के भण्डार के लिए प्रसिद्ध था। ऐसा कहा जाता था कि इसमें विज्ञान, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, गणित, तर्क और साहित्य जैसे विषयों पर आधारित लाखों पांडुलिपियां और ग्रंथ शामिल थे। इसका रहस्य यह है कि इतने विशाल लाइब्रेरी में समाहित अधिकांश ज्ञान आज लुप्त हो गया है और उसके बारे में बहुत कम जानकारी अवेलबल है ।
5. आचार्यों की तीन श्रेणियाँ
नालंदा में आचार्यों को उनकी योग्यता के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था, पहला, दूसरा और तीसरा इस संरचना का विवरण और यह कैसे काम करता है ये भी एक रहस्य का विषय बना हुआ है ।

नालंदा यूनिवर्सिटी को उजड़ने और 800 साल बाद बसाने की कहानी

1. नालंदा यूनिवर्सिटी को उजड़ने

नालन्दा विश्वविद्यालय को 1193 में तुर्की आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर क्रूर हमला किया। खिलजी ने अपने 200 घुड़सवारों के साथ नालन्दा पर आक्रमण कर दिया। इस हमले के दौरान उसने नालंदा के विहारों और मठों को नष्ट कर दिया और उसके महान पुस्तकालय ‘धर्मगंज’ में आग लगा दी। यह पुस्तकालय लाखों पांडुलिपियों और ग्रंथों का भंडार था और कहा जाता है कि यह कई महीनों तक जलता रहा। इस विनाश के कारण नालन्दा के विद्वान और भिक्षु इधर-उधर बिखर गये और विश्वविद्यालय पूरी तरह बर्बाद हो गया।

2. पुनर्निर्माण की कहानी

नालन्दा विश्वविद्यालय खुदाई

नालन्दा विश्वविद्यालय की खुदाई ब्रिटिश पुरातत्वविदों द्वारा 19वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों की खोज और उत्खनन शुरू किया गया था। 1861 में, अलेक्जेंडर कनिंघम ने नालंदा के खंडहरों की पहचान की और खुदाई शुरू की। इस खुदाई में मठों, मंदिरों और पुस्तकालयों के अवशेष मिले, जिससे नालंदा के प्राचीन महत्व पर फिर से प्रकाश पड़ा। उनकी पहल ने नालंदा के इतिहास को फिर से खोजने का मार्ग सरल कर दिया।

इसके बाद में 1905 और 1916 के बीच, जॉर्ज बुकानन और डेविड स्पूनर जैसे पुरातत्वविदों ने नालंदा में खुदाई की। इस दौरान उन्होंने प्रमुख मठों, स्तूपों, मंदिरों और नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों के अवशेषों की खोज निकाले। इन उत्खनन कार्यों से नालन्दा के शैक्षणिक और धार्मिक महत्व का पता चला।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का योगदान

नालंदा विश्वविद्यालय की खुदाई में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ASI ने नालंदा के खंडहरों के संरक्षित और मरम्मत का काम अपने हाथ में लिया है। इसके तहत, पुरावशेष अधिनियम 1958 के तहत नालंदा की पुरावशेषों को प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और संरक्षित स्थल घोषित किया गया है।

खुदाई के दौरान कई मठों (विहारों) के अवशेष मिले हैं, जो नालंदा विश्वविद्यालय के विद्वानों और भिक्षुओं के निवास स्थान थे। इन मठों में अध्ययन और ध्यान के लिए अलग-अलग कक्ष थे और कई मंदिरों और स्तूपों के अवशेष भी मिले हैं। इन मंदिरों में भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म की अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों की मूर्तियाँ थीं। स्तूपों में महत्त्वपूर्ण धार्मिक अवशेष रखे गये थे, जो नालन्दा के धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं।

ASI खुदाई के दौरान पता चला की नालन्दा का पुस्तकालय, जिसे ‘धर्मगंज’ कहा जाता है, प्राचीन काल का सबसे बड़ा पुस्तकालय था इस खुदाई में मिले अवशेषों से पता चलता है कि यह पुस्तकालय लाखों पांडुलिपियों और ग्रंथों का भंडार था। यह पुस्तकालय न केवल बौद्ध धर्म, बल्कि अन्य विषयों पर भी ग्रंथों का संग्रह था।

यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल

2016 में, नालंदा महाविहार (नालंदा विश्वविद्यालय) को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ। इससे इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। इस मान्यता ने नालंदा के संरक्षण और पुनर्निर्माण के प्रयासों को और मजबूत किया।

नालन्दा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण

नालन्दा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम 2010 में उठाया गया था, लेकिन  जब भारत सरकार ने नया नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया। इस नए विश्वविद्यालय की स्थापना प्राचीन नालंदा की परंपराओं और मूल्यों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से की गई है। सिंगापुर, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने भी इस प्रयास में सहयोग देने का वादा किया है।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग

नए नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण में चीन, जापान, सिंगापुर और थाईलैंड सहित 16 देशों ने सहयोग किया। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग नालंदा की वैश्विक प्रतिष्ठा और शिक्षा के प्रति उसके योगदान को दर्शाता है। इस सहयोग से, नालंदा विश्वविद्यालय के भवन का निर्माण कार्य शुरू हो गया है, जो इसे एक महान शैक्षिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में फिर से स्थापित करने में मदद की है।

नए नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण

12वीं सदी के बाद नालंदा विश्वविद्यालय समय की गर्त में खो गया और उसका नामोनिशान पूरी तरह मिट गया। इसके लगभग 600 साल बाद, 19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान नालंदा की खोज दोबारा हुई , आजादी के बाद 1951 में पुराने नालंदा के पास नए नए नालंदा महाविहार की नीव राखी गयी और 2006 में इसे विश्वविधालय का दर्जा मिला , हालांकि इसी समय से कुछ विवाद भी शुरू हुए।

2006 में बिहार सरकार की पहल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को नालंदा मेंटर ग्रुप का अध्यक्ष नियुक्त किया। 2010 में नालंदा के नए परिसर के लिए 2000 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई। 2012 में अमर्त्य सेन को नालंदा विश्वविद्यालय का पहला चांसलर बनाया गया और सितंबर 2014 में विश्वविद्यालय का पहला सत्र शुरू हुआ।

2016 में अमर्त्य सेन ने नालंदा गवर्निंग बोर्ड से खुद को अलग कर लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार नहीं चाहती थी कि वे चांसलर रहें, जिससे यह मामला काफी चर्चित हुआ । नालंदा के नए परिसर का प्रोजेक्ट 2020 में पूरा होने की उम्मीद थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते निर्माण में देरी हुई। हालाँकि, अब नए परिसर का निर्माण पूरा हो चुका है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून 2024 को नालंदा विश्वविद्यालय उद्घाटन किया है।

नालंदा विश्वविद्यालय संरचना और शिक्षा

संरचना 

नालन्दा विश्वविद्यालय, जो प्राचीन काल में पूरी दुनिया में शिक्षा और ज्ञान का एक अद्वितीय केंद्र था, अपनी संरचना के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध था। इसे विश्वविद्यालय वास्तुकला और शैक्षिक संरचना का एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में देखा जा सकता था ।

1. मठ (विहार )

  • नालंदा में कई मठ थे, जो भिक्षुओं के निवास और अध्ययन के स्थान थे।
  • प्रत्येक मठ में ध्यान और अध्ययन के लिए अलग-अलग कमरे थे।
  • मठों में एक केंद्रीय प्रांगण होता था, जिसके चारों ओर अध्ययन कक्ष और पुस्तकालय होते थे।

2. मंदिर (स्पूत)

  • नालंदा में कई मंदिर और स्तूप थे, जिनका उपयोग धार्मिक गतिविधियों और पूजा के लिए किया जाता था।
  • ये मंदिर बौद्ध वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण थे, जिनमें भगवान बुद्ध और अन्य बौद्ध आकृतियों की मूर्तियाँ थीं।

3. लाइब्रेरी (धर्मगंज)

  • नालन्दा का लाइब्रेरी, जिसे धर्मगंज कहा जाता है, प्राचीन काल का सबसे बड़ा लाइब्रेरी था।
  • इसमें लाखों पांडुलिपियों और ग्रंथों का संग्रह था, जो बौद्ध धर्म के साथ-साथ अन्य विषयों पर भी आधारित थे।
  • यह लाइब्रेरी तीन मुख्य भाग में विभाजित जैसे रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक।

शिक्षा

नालन्दा विश्वविद्यालय की शिक्षा व्यवस्था अत्यधिक उन्नत एवं एडवांस थी, यहां पर अलग – अलग विषयों पर गहन अध्ययन एवं शोध किया गया।

1. शैक्षणिक पाठ्यक्रम (Academic Course)

  • यहां बौद्ध धर्म के साथ-साथ तर्कशास्त्र, व्याकरण, चिकित्सा, गणित, विज्ञान, मनोवैज्ञानिक, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, युद्धनीति, इतिहास, वास्तुकला, अर्थशास्त्र, विज्ञान और योग जैसे विषयों का भी अध्ययन किया जाता था।
  • यहाँ पर शिक्षा का माध्यम संस्कृत और पाली भाषा थी

2. प्रवेश प्रक्रिया (admission process)

  • नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए एक कठोर चयन प्रक्रिया थी।
  • यहाँ शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से छात्र आते थे और प्रवेश के लिए उन्हें मौखिक परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती थी।

3. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र (International Education Center)

  • भारत के अलावा चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्की और श्रीलंका से भी छात्र नालंदा विश्वविद्यालय में आते थे।
  • यहां के शिक्षण एवं अनुसंधान की प्रतिष्ठा विश्व भर में थी।

नालन्दा विश्वविद्यालय शिक्षकों और छात्रों की संख्या

नालंदा विश्वविद्यालय के विशाल परिसर में 11 बड़े विहार (मठ) और 6 प्रमुख मंदिर थे, जो छात्रों के लिए आवास और अध्ययन सुविधाएं अवेलबल थी। यहां बौद्ध धर्म के साथ-साथ तर्कशास्त्र, व्याकरण, चिकित्सा, गणित, विज्ञान, मनोवैज्ञानिक, ज्योतिष, खगोलशास्त्र, युद्धनीति, इतिहास, वास्तुकला, अर्थशास्त्र, विज्ञान और योग जैसे विषयों का भी अध्ययन करने की व्यवस्था थी।
इतिहास करो का कहना है नालंदा विश्वविद्यालय में 300 बड़े कमरे और 9 बड़े हॉल और साथ ही 9 माजिला विशाल एक लाइब्रेरी थी इस विशाल लइब्रेरी में 90 लाख से भी ज्यादा पुस्तके हुआ करती थी । यहाँ एक समय में 10 हजार से भी ज्यादा छात्र और 2,700 से ज्यादा शिक्षक थे । 

नालंदा विश्वविद्यालय FAQ

1.नालंदा विश्वविद्यालय क्या है?
Ans – नालंदा विश्वविद्यालय भारत के बिहार राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक और पुनर्जीवित उच्च शिक्षा संस्थान है। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण कर इसे आधुनिक शिक्षा एवं अनुसंधान का प्रमुख केन्द्र बनाया गया है।

2.नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी?
Ans – प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासकों द्वारा की गई थी। आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 2010 में भारतीय संसद द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 के माध्यम से की गयी थी ।

3.नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन कब हुआ था?
Ans – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून 2024 को बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नवनिर्मित परिसर का उद्घाटन किया था।

4.नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण कैसे हुआ?
Ans – नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना भारतीय संसद द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के माध्यम से की गई थी। इसके निर्माण और विकास में 17 देशों का सहयोग शामिल है। निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ और 2020 में COVID-19 के कारण इसमें देरी हुई, लेकिन अब यह पूरी तरह से तैयार है।

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