
मुंशी प्रेमचंद को हिंदी साहित्य के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है। munshi premchand ka jivan parichay अनोखी और प्रेरणादायक है। प्रेमचंद ने अपना पूरा जीवन साहित्य की खोज में समर्पित कर दिया और हिंदी और उर्दू साहित्य में उनके योगदान को आज भी बड़े आदर और सम्मान के साथ याद किया जाता है। वह हिंदी साहित्य के सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से पढ़े जाने वाले लेखकों में से हैं।
अपने जीवनकाल में उन्होंने 300 से अधिक कहानियाँ, एक दर्जन से अधिक उपन्यास, निबंध, आलोचना, लेख और संस्मरणों की रचना की। प्रेमचंद की रचनाएँ समाज की वास्तविकता को दर्शाती थीं और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डाला। उनके साहित्यिक कार्यों ने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया बल्कि समाज में बदलाव लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। munshi premchand ka jivan parichay in hindi में पूरी परिचय आगे पढ़े –
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
विवरण | जानकारी |
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वास्तविक नाम | धनपत राय श्रीवास्तव |
प्रचलित नाम | नवाब राय, मुंशी प्रेमचंद |
जन्म | 31 जुलाई, 1880 |
जन्म स्थान | लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) |
पिता का नाम | अजायब राय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
पत्नी का नाम | शिवरानी देवी |
संतान | श्रीपत राय, अमृत राय, कमला देवी श्रीवास्तव |
पेशा | लेखक, अध्यापक, पत्रकार |
काल | आधुनिक काल |
विधा | कहानी, उपन्यास, निबंध |
भाषा | उर्दू, हिंदी |
प्रमुख कहानियां | पंच परमेश्वर, दो बैलों की कथा, ठाकुर का कुआं, सवा सेर गेहूँ, नमक का दरोगा आदि |
प्रमुख उपन्यास | रंगभूमि , कर्मभूमि , गबन , सेवासदन इत्यादि |
नाटक | कर्बला, वरदान, संग्राम, प्रेम की वेदी |
संपादन | माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण |
प्रगतिशील लेखक संघ | प्रथम अध्यक्ष (1936) |
निधन | 08 अक्टूबर 1936 |
मुंशी प्रेमचंद प्रारंभिक जीवन
मुंशी प्रेमचंदजी का जन्म की बात करे तो , 1880 में कशी से लगभग चार मिल दूर एक लमही गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था उनके पिता अजायब राय एक डाकिया के रूप में काम करते थे, जब प्रेमचद जी केवल सात वर्ष के थे, तब उनकी माता की मृत्यु हो गयी और चौदह वर्ष के थे तब उनकी पिता की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति और भी ख़राब हो गई।
मुंशी प्रेमचंदजी ने अपने जीवन की शुरुआती दिनों में घर की जिम्मेदारी सभालनी शुरू कर दी और रोटी कमाने के लिए ट्यूशन का सहारा लिया, कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी प्रेमचंदजी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की और अपनी शैक्षिक यात्रा जारी रखी। उनके संघर्षपूर्ण जीवन ने उन्हें समाज की वास्तविकताओं को समझने और उन्हें अपने साहित्य में व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया।
शिक्षा और विवाह
प्रेमचंद जी की पहली विवाह कम उम्र में ही हो गयी थी, लेकिन यहाँ विवाह सफल नहीं रही। बाद में दूसरी विवाह शिवरानी देवी से की जिन्होंने अपने जीवन में स्थिरता अपना लिया । इस दौरान, उन्होंने एक स्कूल मास्टर के रूप में काम करते हुए अपनी शिक्षा जारी रखी और एफ.ए. और बी.ए. प्राप्त किया। परीक्षाएँ सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कीं।
उनकी कड़ी मेहनत और लगन का फल 1921 में मिला जब उन्हें गोरखपुर में स्कूल उप निरीक्षक (स्कूल मास्टरी) के पद पर नियुक्त किया गया। इस पद से न केवल उन्हें व्यावसायिक पहचान मिली बल्कि यह उनके साहित्यिक कार्यों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हुआ।
प्रेमचंद का पहला विवाह
प्रेमचंद की पहली विवाह उनके सौतेले दादा ने तब तय की थी जब वह सिर्फ 15 साल के थे। विवाह के समय यह स्पष्ट हो गया कि लड़की न तो दिखने में सुन्दर थी और न ही स्वभाव में मधुर थी। वह झगड़ालू स्वभाव की थीं, जबकि प्रेमचंद संवेदनशील और कल्पनाशील व्यक्ति थे। इस वजह से ये शादी उनके लिए दुखद साबित हुई और अभिशाप जैसी बन गई, इस अनुभव से आहत होकर प्रेमचंद ने निर्णय लिया कि भविष्य में वह एक ऐसी विधवा से विवाह करेंगे जो उनके उच्च विचारों और आदर्शों के अनुरूप हो। इस प्रकार उन्होंने शिवरानी देवी से दूसरी शादी की, जिससे उनके जीवन में स्थिरता और सद्भाव आया।
प्रेमचंद का दूसरा विवाह
1905 के अंतिम दिनों में प्रेमचंद ने शिवरानी देवी से विवाह किया। शिवरानी देवी एक बाल विधवा थीं और उनके पिता फ़तेहपुर के पास एक साहसी जमींदार थे। इस शादी से उनके पिता भी बेहद खुश थे। कहा जाता है कि इस दूसरी शादी के बाद प्रेमचंद के जीवन में सकारात्मक बदलाव आये और उनकी आर्थिक कठिनाइयां कम हो गयीं। प्रेमचंद की भी पदोन्नति हुई और उन्हें स्कूल का उप निरीक्षक बना दिया गया ।
प्रेमचंद ने इस खुशी में पांच कहानियो का संग्रह ‘सोजे वतन’ प्रकाशित हुआ जिनकी लोकप्रियता मिली, शिववरणी देवहि द्वारा लिखित पुस्तक ‘ प्रेमचंद घर ‘ उनके जिवंत और अंतरंग चित्र प्रस्तुत करती है। प्रेमचंद स्वभाव से सरल एवं प्रसन्न व्यक्ति थे और वे सभी पर भरोसा करते थे। लेकिन दुर्भाग्यवश, उन्हें अक्सर विश्वासघात सहना पड़ा। उसने कई लोगों को पैसे उधार दिए, लेकिन उनमें से ज्यादातर ने उसे धोखा दिया।
इन सबके बावजूद प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को अमूल्य विरासत देते हुए अपनी रचनात्मकता और साहित्यिक रचनाएँ जारी रखीं। उनका जीवन संघर्ष और उपलब्धियों से भरा रहा, जो आज भी साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है ।
मुंशी प्रेमचंद साहित्यिक परिचय
मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्यिक जीवन में लगभग एक दर्जन उपन्यासों और 300 कहानियों की रचना की। उन्होंने ‘माधुरी’ और ‘मर्यादा’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया तथा ‘हंस’ और ‘जागरण’ समाचार पत्र भी प्रकाशित किये। वह उर्दू रचनाओं में ‘नवाब राय’ नाम से लिखते थे। उनकी रचनाएँ यथार्थवाद का उदाहरण हैं, जिनमें जीवन की वास्तविकताओं का सजीव चित्रण किया गया है। सामाजिक सुधार और राष्ट्रवाद उनके लेखन के प्रमुख विषय रहे हैं, जो उनके कार्यों को एक गहरा सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं।
प्रेमचंद जी ने हिंदी कथा साहित्य को एक नई दिशा देने का क्रांतिकारी कार्य किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक सुधार के प्रति भावनात्मक प्रेम और राष्ट्रीय भावनाओं की गहराई उभरती है। उनकी कहानी ‘मां’ अपने समय की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों का संपूर्ण चित्रण है। उन्होंने किसानों की दुर्दशा, सामाजिक बंधनों में उलझी महिलाओं की पीड़ा और जाति कठोरता के बीच सन्यासी परिवार की पीड़ा का गहन चित्रण किया है ।
प्रेमचंद ने अपनी किताबों में यह भी लिखा है कि वे भारत के दलित लोगों, शोषित किसानों, मजदूरों और उपेक्षित महिलाओं के प्रति सहानुभूति रखते थे। उनकी रचनाएँ सामयिकता के साथ-साथ उन तत्वों से भरपूर हैं जो उन्हें शाश्वत एवं स्थायी बनाते हैं। मुंशी प्रेमचंद अपने समय के उत्कृष्ट कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नए युग की आशाओं और आकांक्षाओं की जिवंत अभिव्यक्ति का सफल माधयम बनाया ।
मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ/ कृतियाँ
मुंशी प्रेमचंद जी की रचनाएँ
श्रेणी | रचनाएँ |
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उपन्यास | कर्मभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, वरदान, सेवासदन, रंगभूमि, गबन और गोदान |
नाटक | कर्बला , प्रेम की वेदी, संग्राम और रूठी रानी |
जीवन चरित्र | कलम, तलवार और त्याग, दुर्गादास , महात्मा शेखसादी और राम चर्चा |
निबंध संग्रह | कुछ विचार |
सम्पादित कृतियाँ | गल्प रत्न और गल्प – समुच्चय |
कहानी-संग्रह | नवनिधि, ग्राम्य जीवन की कहानियाँ, प्रेरणा, कफन, प्रेम पचीसी, कुत्ते की कहानी, प्रेम-प्रसून, प्रेम-चतुर्थी, मनमोदक, मानसरोवर, समर-यात्रा, सप्त-सरोज, अग्नि-समाधि, प्रेम-गंगा और सप्त-सुमन |
मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की सूची
मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी सूचि में एक प्रमुख सरोवर है जिसमे 300 से अधिक कहानिया है और इनमे से 188 कहानिया विशेष है । उनकी रचनाये समाज , राजनीति और मानवीय रिस्तो की गहराई से जुडी हुई है । प्रेमचंद जी ने अपनी कहानियों में विभिन्न सामाजिक मुद्दों और मानवीय दुखों का सामाजिक संकेत दिया, जिसके कारण उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं।
क्रमांक | कहानी का नाम |
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1 | रात लड़की |
2 | अमृत |
3 | आखरी मंजिल |
4 | ईदगाह |
5 | एक आज की कसर |
6 | कफन |
7 | कातिल |
8 | क्रिकेट मैच |
9 | ग्रह दादा |
10 | जुलूस |
11 | झांकी |
12 | त्रिशूल |
13 | दंड |
14 | दूध का दाम |
15 | देवी |
16 | एक और कहानी |
17 | निर्वाचन |
18 | पत्नी से पति |
19 | पुत्र प्रेम |
20 | प्रतिशोध |
21 | बड़े घर की बेटी |
22 | बंद दरवाजा |
23 | बैंक का दिवाला |
24 | मंत्र |
25 | मां |
26 | मुक्ति धन |
27 | मोटे राम जी शास्त्री |
28 | स्वर्ग की देवी |
29 | वासना की कड़ियाँ |
30 | शंखनाद |
31 | शांति |
32 | सभ्यता का रहस्य |
33 | सवा शेर गेहूं |
34 | नमक का दरोगा |
35 | सुहाग का शव |
36 | होली की छुट्टी |
37 | अंधेर |
38 | आत्मा संगीत |
39 | इज्जत का खून |
40 | ईश्वरी न्याय |
41 | एक्ट्रेस |
42 | कर्मों का फल |
43 | कोई दुख ना हो तो बकरी का खरीद लो |
44 | खुदी |
45 | जेल |
46 | गैरत की कठार |
47 | ठाकुर का कुआं |
48 | तेंतर |
49 | दिल की रानी |
50 | दूसरी की शादी |
51 | दूसरी शादी |
52 | दो बैलों की कथा |
53 | धिक्कार |
54 | नरक का मार्ग |
55 | नाग पूजा |
56 | परीक्षा |
57 | पोस की रात |
58 | बड़े बाबू |
59 | बांका जमींदार |
अन्य कहानियाँ
क्रमांक | कहानी का नाम |
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60 | नशा |
61 | नयी बीबी |
62 | नए समाज में |
63 | नौकर |
64 | पत्नी |
65 | पति और पत्नी |
66 | पाठशाला |
67 | पाप |
68 | प्यार |
69 | प्रायश्चित |
70 | प्रमुख |
71 | प्रसाद |
72 | प्रवेश |
73 | प्रसन्नता |
74 | प्रतिदान |
75 | प्रतिमा |
76 | प्रसन्नता |
77 | प्रायश्चित |
78 | पंचायत |
79 | पंडित |
80 | परेशानी |
81 | परीक्षा |
82 | परिवेश |
83 | परी |
84 | पलक |
85 | पलक झपकते |
86 | परिचय |
87 | परिवर्तन |
88 | परलोक |
89 | पंछी |
90 | पर्व |
91 | पहाड़ |
92 | पड़ोस |
93 | पक्का |
94 | पटकथा |
95 | पकवान |
96 | पंख |
97 | पंक्ति |
98 | परिवर्तन |
99 | पथिक |
100 | पता |
101 | पतझड़ |
102 | पल |
103 | प्रेम |
104 | प्रार्थना |
105 | प्रयास |
106 | प्रधान |
107 | परिवर्तन |
108 | पुल |
109 | पूर्ण |
110 | प्रतिभा |
111 | प्रथा |
112 | प्रस्तुति |
113 | प्रतिद्वंद्विता |
114 | प्रतिरोध |
115 | प्रेम-लीला |
116 | प्रजा |
117 | प्रपंच |
118 | प्रबुद्ध |
मुंशी प्रेमचंद्र के नाटक
अब हम मुंशी प्रेमचंद्र के द्वारा रचित नाटक के बारे में जानेगे
नाटक का नाम | वर्ष | विषय/संकेत |
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कर्मभूमि | 1931 | समाजिक और राजनीतिक विवाद |
शतरंज के खिलाड़ी | 1924 | जाति और समाज के मुद्दे |
मानसरोवर | 1936 | प्रेम और समाज की असमानता |
इन्सान | 1935 | मानवता और सहानुभूति |
नदी के दो बंके | 1936 | व्यक्ति और समाज के बीच संघर्ष |
मुंशी प्रेमचंद्र के निबंध
मुंशी प्रेमचंद जी एक सवेंदनशील लेखक होने के साथ – साथ सजक नागरिक और संपदिक भी थे , कई गंभीर विषयो पर लेख और निबंध लिखे है आप निचे पढ़े –
- साहित्य का उद्देश्य
प्रेमचंद जी ने साहित्य के उद्देस्य और सामाजिक भूमिका पर विचार व्यक्त किये है । प्रेमचंद जी साहित्य को समाज का दर्पण बताय हो और इसके माध्यम से समाज सुधार की जरूरतों पर बल दिया है । - पुराना जमाना नया जमाना
इस निबंध में पुराने और नए समय की तुलना करते हुए सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन पर अपने विचार साझा किये है । - स्वराज के फायदे
इस लेख में प्रेमचंद ने स्वराज के महत्व और इसके लाभों पर चर्चा की है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के समय इसे जनता के लिए जागरूकता फैलाने का माध्यम बनाया। - कहानी कला (तीन भागों में)
इस निबंध में प्रेमचंद जी कहानी लेखन की कला , उसके तत्वों और उसकी तकनीक पर विस्तार से चर्चा की है । - उपन्यास
इस लेख में प्रेमचंद जी ने उपन्यास की परिभाषा , उसकी विशेषताओं और सामाजिक भूमिका पर विचार प्रकट किये है । - हिंदी-उर्दू की एकता
इस निबंध में प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू भाषाओं की एकता और उनके बीच के संबंधों पर विचार किया है। उन्होंने भाषाई एकता के माध्यम से सांस्कृतिक एकता की आवश्यकता पर जोर दिया है। - कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार
इस निबंध में उन्होंने राष्ट्रीय भाषा के महत्व और उसकी आवश्यकता पर विचार किया है। उन्होंने भारतीय समाज में भाषाई एकता की आवश्यकता पर बल दिया है। - जीवन में साहित्य का स्थान
इस लेख में प्रेमचंद ने जीवन में साहित्य के महत्व और उसकी उपयोगिता पर अपने विचार साझा किए हैं। उन्होंने साहित्य को समाज का मार्गदर्शक बताया है।
मुंशी प्रेमचंद का निधन
मुंशी प्रेमचंद ने अपना पूरा जीवन साहित्य की सेवा में समर्पित कर दिया था और उनकी यही साधना उनके अंतिम क्षणों तक जारी रही। जून 1936 से उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था, लेकिन इसके बावजूद वे अपनी साहित्यिक साधना से बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए। इसी दौरान उन्होंने अपने अंतिम उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ की रचना शुरू की।
दुर्भाग्य से उनका स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ता गया और अंततः 8 अक्टूबर 1936 को हिंदी साहित्य के इस महान लेखक ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। उनकी मृत्यु के बावजूद उनके साहित्यिक कार्यों ने उन्हें हमेशा के लिए अमर बना दिया और वे आज भी पढ़ने वाले के दिलों में जीवित हैं।
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